चोटी की पकड़–118
उन्तालीस
यूसुफ छनके। पिता से कुछ हाल कहा। अली स्वदेशी के मामले से, राजों के कलकत्तेवाले कोचमैनों से मिले, उनमें किसी का लड़का थानेदार न हुआ था, अली को इज्जत से बैठाला।
सच-झूठ हाल सुनाकर आंदोलन में सरकार की मदद के लिए अली ने उनको उभाड़ा।
उन्होंने साथ देने को कहा और अली के गिरोह में आ गए। खिलाफ कार्रवाई में भेद देने का इरादा पक्का कर लिया। कुल काम कर चले।
इसी लगाव से अली ने एजाज के घर एक कोचमैन को भेजा। नोटबुक के अनुसार 'सीन' कहने के लिए कहा और क्या जवाब मिलता है,
खामोशी से लौटकर सुनाने के लिए समझाया। गरोह की पहचान के लिए दूसरे-दूसरे राजों के दो कोचमैन भेजे, ताकि हिम्मत बँधी रहे, यों सरकारी आदमी को कोई खतरा नहीं, यह भी कहा।
लोग गए आगे-पीछे रहे। एजाज की कोठी देखी। बागीचे देखे। दरबान से बातचीत की। 'सीन' कहा। नसीम को मालूम हुआ। एजाज आ गई थी।
समझकर कह दिया, "फँस गया।" लौटकर लोगों ने अली से कहा। अली बहुत खुश हुए। यूसुफ से कहा।
यूसुफ को जान मिली। कुछ अरसा किया, फिर गए। खुशी और कामयाबी का दरिया बह रहा था।
तरह-तरह की भवरें उठ रही थीं। दिल में गड़ गया कि एक नाका तोड़ लिया, इसी रास्ते चलेंगे। बग्घी किराये की। दो आदमियों को बैठालकर चले। डोर लगी थी।
बढ़िया-बढ़िया स्क्वायर और रास्ते पार करती बग्घी चली, बढ़िया-बढ़िया मकान। एक बढ़िया फाटकदार बँगलानुमा प्रासाद में बग्घी गई। यूसुफ को उतारकर रास्ते पर खड़ी हुई।
यूसुफ दरबान से कहकर गेस्टरूम में बैठे। सेक्रेटरी आए। देखकर पहचान गए। यूसुफ ने कहा, "तीन और तीन।"